Program Video: https://www.youtube.com/watch?v=dLjGYW353CA&t=180s
आचार्य शंकर ने कहा है कि सूत्रों का उपयोग वेदांत वाक्यरूपी पुष्पों को गूथने के लिए है,उक्त बातें भारत अध्ययन केंद्र, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय,वाराणसी तथा दार्शनिक अध्ययन केंद्र, हेरीटेज सोसाईटी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एकदिवसीय वेबिनार "आचार्य शंकर के अद्वैत दर्शन का भारतीय संस्कृति के परिष्करण में योगदान दर्शन" विषय पर उपस्थित मुख्य वक्ता द्वारा कही गयी।
परिचय वक्तव्य, स्वागत एवं विषय प्रवेश से कार्यक्रम की शुरुआत विश्वविद्यालय के डॉ.ज्ञानेंद्र नारायण राय द्वारा किया गया। उन्होंने मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् के सदस्य सचिव प्रो. सच्चितानंद मिश्र, कायर्क्रम की अध्यक्षता कर रहे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक प्रो. विजय शंकर शुक्ल, आयोजन समिति के सदस्यों, उपस्थित दोनों संस्थानों के पदाधिकारियों और दर्शकों का संक्षित परिचय तथा स्वागत किया गया।
"आचार्य शंकर के अद्वैत दर्शन का भारतीय संस्कृति के परिष्करण में योगदान दर्शन" विषय पर आयोजित इस एकदिवसीय वेबिनार में मुख्य वक्ता प्रो. सच्चितानंद मिश्र द्वारा विस्तार से अपनी बातें रखी।
मुख्य वक्ता ने आचार्य शंकर का जिक्र करते हुए कहा कि एकतत्ववाद और अद्वैतवाद में अंतर करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने समग्र उपनिषदों का एक निचोड़ एक अभिप्राय अनुवेषित करने का प्रयास करते है। वे ये देखने का प्रयास करते हैं कि समग्र उपनिषद किस तत्व के बारे में प्रतिपादित करता है, और वह तत्व है शारीरक। मुख्य वक्ता ने कहा कि शरीर जो है वह नष्ट हो जाता है। शरीर को जब आत्मा माना जाता है तब अपने लिए जो प्रिय चीज आत्मा को प्रिय होता है। ऐसे में मनुष्य सिर्फ अपने लिए जीवित रहता है। इस समय मनुष्य दूसरे लोगों के कष्ट, दुख, समस्या को भूल कर सिर्फ अपने लिए जीता है।
प्रो. मिश्र ने कहा कि शंकराचार्य मानते हैं कि संसार में ब्रह्म ही सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव और ब्रह्म अलग नही हैं। जीव केवल अज्ञान के कारण ही ब्रह्म को नहीं जान पाता जबकि ब्रह्म तो उसके ही अंदर विराजमान है। उन्होंने अपने ब्रह्मसूत्र में "अहं ब्रह्मास्मि" ऐसा कहकर अद्वैत सिद्धांत बताया है। अद्वैत सिद्धांत चराचर सृष्टि में भी व्याप्त है। उन्होंने कहा कि आज का मानव में अपने थोड़े से दुख, दूसरे के बहुत बड़ा दुख से भी बड़ा लगता है। इससे आज के व्यक्ति का व्यवहार दूसरे को आसानी से अपमानित कर देता है लेकिन कोई उनको अपमानित कर दे तो बुरा लग जाता है।
विद्वान वक्ता ने कहा कि संस्कृति को इस रूप में देखना चाहिए कि की हमारा समग्र जीवन दृष्टि क्या है, यानी जो हमारी व्यवहार है वही संस्कृति है। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य ने भारतीय संस्कृति को दुनिया के सामने इस दृष्टि को सामने रखते हुए ले आए। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि सबके प्रति आत्मभाव रखना चाहिए तभी जाकर ब्रह्मसाक्षात्कार हो सकता है। इस कार्यकर्म में मुख्य वक्ता द्वारा बहुत से लाभकारी एवम भारतीय संस्कृति से जुड़ी बातों का जिक्र किया गया।
भारतीय संस्कृति के प्राण है आचार्य शंकर का अद्वैत दर्शन-प्रो. विजय शंकर शुक्ला
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक प्रो. विजय शंकर शुक्ल द्वारा अध्यक्षीय उद्बोधन किया गया। अपने वक्तव्य में प्रो. शुक्ल ने मुख्य वक्ता के व्याख्यान की प्रशंसा की और कहा कि मुख्य वक्ता ने अपनी बातें कुशलता से हम सबके सामने रखी और आचार्य शंकर के दर्शन से हमलोगों को परीचित कराया। उन्होंने यह भी बताया कि आज के विद्वत व्याख्यान में कई रोचक एवं ज्ञानवर्धक तथ्य को हमलोगों के समक्ष रखा है । प्रो. शुक्ल ने हेरीटेज सोसाईटी द्वारा किये जा रहे कार्यों की प्रशंसा भी की।
सत्र का संचालन आज के इस कार्यक्रम के समन्वयक तथा हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डॉ. अनंताशुतोष द्विवेदी द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम के अंत में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नै दिल्ली के डॉ. मयंक शेखर द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया।
कार्यक्रम में प्रो. दीनबंधु पाण्डेय, प्रो. सदाशिव द्विवेदी तथा सनातन कुमार द्वारा भी विचार प्रस्तुत किया गया। इस आयोजन में सानन्त टीम के सदस्यों का तकनीकी सहयोग प्राप्त हुआ। इस अवसर पर कई विश्वविद्यालयों के फैकल्टी, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं विरासत प्रेमी नई भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र भी प्रदान किया गया।