विरासत टॉक शृंखला के 175 वें कार्यक्रम का आयोजन
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विरासत टॉक श्रृंखला के 175 वें वेबिनार में मुख्य वक्ता के रूप में हैदराबाद विश्विद्यालय के प्रो. आलोक पराशर सेन ने "हैदराबाद और स्थानीय समुदायों के मूर्त और अमूर्त विरासत" विषय पर विस्तार से अपनी बातें रखीं। यह आयोजन हेरीटेज सोसाईटी के अमूर्त्त सांस्कृतिक विरासत विभाग के द्वारा आयोजित की गयी।
कार्यक्रम की शुरुआत हेरीटेज सोसाइटी के राजस्थान मंडल के समन्वयक मृणालिनी के परिचय वक्तव्य, स्वागत एवं विषय प्रवेश से किया गया। उन्होंने आज के मुख्य वक्ता हैदराबाद विश्विद्यालय के प्रो. आलोका पराशर सेन का संक्षित परिचय उपस्थित सभी प्रतिभागियों को कराया तथा मुख्य वक्ता, आयोजन समिति के सदस्यों, संस्थान के उपस्थित समस्त पदाधिकारियों और प्रतिभागियों का स्वागत भी किया। उन्होंने यह भी बताया कि ये पूरा कार्यक्रम हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डॉ. अनंताशुतोष द्विवेदी के मार्गदर्शन में किया जा रहा है। इस आयोजन के अध्यक्ष प्रो. अनंताशुतोष द्विवेदी थे।
इतिहास से विरासत की समझ होती है यह परिवर्तनीय होता है- प्रो. आलोका पराशर सेन
मुख्य वक्ता ने प्रोजेक्टर के सहायता से हैदराबाद की विरासत को बहुत ही विस्तार से समझाया। उन्होंने हस्तकला का एक उदाहरण कलमकारी का जिक्र करते हुए कहा कि यह शिल्प एक हिंदू शैली, जिसे श्रीकालहस्ती के रूप में जाना जाता है और पूरी तरह से हाथ से किया जाता है। एक इस्लामी शैली भी है जिसे मछलीपट्टनम के रूप में जाना जाता है जिसमें हाथ और ब्लॉक दोनों तकनीकों का उपयोग किया जाता है। उन्होंने आगे कहा कि हैदराबाद की कला और शिल्प के उदाहरण विभिन्न संग्रहालयों में रखे गए हैं। उन प्रदर्शनियों को पटना संग्रहालय, सालारजंग संग्रहालय, आंध्रप्रदेश राज्य पुरातत्व संग्रहालय , निज़ाम संग्रहालय, सिटी संग्रहालय और बिड़ला विज्ञान संग्रहालय में देखा जा सकता है।
प्रो. आलोका पराशर सेन ने मूर्त और अमूर्त विरासत का जिक्र करते हुए कहा कि सांस्कृतिक संपत्ति इसमें कलाकृतियां जैसे भौतिक या मूर्त सांस्कृतिक विरासत शामिल हैं ये आम तौर पर चल और अचल विरासत के दो समूहों में विभाजित होते हैं। अचल धरोहर में भवन, बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठान, आवासीय परियोजनाएं तथा अन्य ऐतिहासिक स्थान हैं। इस विरासत में किताबें, दस्तावेज, जंगम कलाकृतियां, मशीनें, कपड़े और अन्य कलाकृतियां शामिल हैं, जिन्हें भविष्य के संरक्षण के योग्य माना जाता है। इनमें पुरातत्व, वास्तुकला, विज्ञान या प्रौद्योगिकी के वस्तुएं शामिल हैं। उन्होंने कहा कि मूर्त संस्कृति का संरक्षण संग्रहालय विज्ञान,अभिलेखीय विज्ञान,कला संरक्षण,पुरातत्व संरक्षण,स्थापत्य संरक्षण इत्यादि के अंतर्गत किया जाता है।
मुख्य वक्ता ने अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें एक विशेष संस्कृति के गैर-भौतिक पहलू शामिल हैं, जो इतिहास में एक विशिष्ट अवधि के दौरान सामाजिक रीति-रिवाजों द्वारा बनाया जाता है। इस अवधारणा में एक समाज में व्यवहार के तरीके और साधन, और एक विशेष सांस्कृतिक जलवायु में संचालन के लिए औपचारिक नियम शामिल हैं। विशेषकर अमूर्त्त विरासत वह कहलाता है जिसे हम अपनी हाथों से स्पर्श नहीं कर पाते , क्योंकि अमूर्त्त विरासत का कोई भौतिक स्वरुप नहीं होता है।
हेरीटेज सोसाइटी के हरियाणा मंडल के सदस्य प्रवीण कुमार द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया। अपने वक्तव्य में प्रवीण कुमार ने मुख्य वक्ता के व्याख्यान की प्रशंसा की और कहा कि एक कुशल इतिहासकार मुख्य वक्ता अपने सम्बोधन में विस्तार से अपने शोध को प्रस्तुत किए। उन्होंने इस कार्यक्रम के लिए हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक प्रो. अनंताशुतोष द्विवेदी के प्रति भी आभार व्यक्त किया।
सत्र का संचालन हेरीटेज सोसाईटी के बौद्ध विरासत शोध संस्थान के निदेशक आजाद हिन्द गुलशन नन्दा द्वारा किया गया। आयोजन में सानन्त टीम के सदस्यों का तकनीकी सहयोग प्राप्त हुआ। इस अवसर पर कई विश्वविद्यालयों के फैकल्टी, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं विरासत प्रेमी नई भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र भी प्रदान किया गया। कार्यक्रम में देश के कई विद्वानों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
हेरीटेज सोसाइटी द्वारा हैदराबाद के मूर्त और अमूर्त विरासत पर विमर्श