हेरीटेज सोसाइटी ने शुरू किया "प्राचीन भारतीय मंदिर स्थापत्य" कार्यशाला
भारतीय मंदिर स्थापत्य की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान है। भारत मंदिरों का देश है। प्राचीन कालीन मंदिरों, प्रतिमाओं एवं उसके अवशेष सम्पूर्ण भारत में सभी जगहों पर देखी जा सकती है। उक्त बाते हेरीटेज सोसाइटी द्वारा आयोजित "प्राचीन भारतीय मंदिर स्थापत्य" कार्यशाला के उद्घाटनकर्त्ता के रूप में आमंत्रित भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के संयुक्त महानिदेशक डॉ. संजय मंजुल द्वारा कही गयी।
कार्यशाला की व्याख्या करते हुए हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक प्रो. अनंताशुतोष द्विवेदी ने कहा कि आने वाले तीन सप्ताह तक एक दर्जन से भी ज्यादा व्याख्यान होने वाला है, जिसमें प्राचीन भारत के मंदिर और उसके वास्तुकला पर चर्चा होगी। कार्यशाला में देश एवं विदेश से विख्यात इतिहासकार और विद्वान रिसोर्स पर्सन के रूप में भाग लेंगे। साथ ही प्रतिभागियों को भारतीय मंदिर स्थापत्य के इतिहास को नजदीक से जानने का अवसर मिलेगा।
कार्यक्रम के स्वागत उद्बोधन हेरीटेज सोसाइटी के राजस्थान मंडल के समन्वयक मृणालिनी भारद्वाज ने किया। उनके द्वारा परिचय वक्तव्य एवं समस्त विद्वानों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया गया। उन्होंने आयोजन के गेस्ट ऑफ ऑनर आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया नई दिल्ली के ज्वाइंट डायरेक्टर जर्नल डॉ. संजय कुमार मंजुल का संक्षित परिचय उपस्थित सभी प्रतिभागियों को कराया तथा मुख्य वक्ता, आयोजन समिति के सदस्यों, संस्थान के पदाधिकारियों और दर्शकों का स्वागत भी उनके द्वारा किया गया।
भारत में मंदिर निर्माण में धार्मिक वास्तुकला का बहुत बड़ा प्रभाव -डॉ. संजय कुमार मंजुल
उद्घाटनकर्ता डॉ. संजय कुमार मंजुल ने गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में भाग लिया। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत के अनेक हिस्सों में अलग-अलग प्रकार के मंदिर निर्माण में विभिन्न वास्तुकला का उपयोग किया गया है। उन्होंने कहा कि उत्तर भारत में नागर शैली के तहत निर्माण किया गया, तो वही दक्षिण भारत में द्रविड़ शैली के तहत। उन्होंने नॉर्थ ईस्ट के मंदिर निर्माण का भी जिक्र किया।उन्होंने आगे कहा कि हर काल खण्ड में मंदिर के वास्तुकला पर तत्कालीन धार्मिक प्रभाव पड़ा जिसे आसानी से मंदिरोंअध्ययन से समझा जा सकता है। उन्होंने हेरीटेज सोसाईटी को इस तरह के आयोजन हेतु काफी प्रशंसा भी की और प्रतिभागियों को शुभकामनायें भी दी।
देश के बाहर भी भारतीय वास्तुकला की छाप - प्रो. नीरू मिश्रा
इस वर्कशॉप की अध्यक्षा प्रो. नीरू मिश्रा ने सभी प्रतिभागियों को इस कार्यक्रम से जुड़ने के लिए धन्यवाद किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में सपाट, शिखर और अर्द्धवृताकार प्रकार के मंदिरों का जिक्र किया। उन्होंने सांची, देवगढ़ और टैराकोटा का मंदिर का जिक्र करते हुए कहा कि ये मंदिर भारतीय वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। अध्यक्षा ने आगे कहा कि जब भारत के वास्तुकला शीर्ष पर था तब वह भारत से भी बाहर अपना छाप छोड़ने में सफल रहा। उन्होंने कहा कि भारतीय छाप म्यांमार, कंबोडिया, लावोस, इंडोनेशिया,थाईलैंड, जावा,चीन और अफगानिस्तान तक देखी जा सकती है। कंबोडिया में तो राजतिलक मंदिरों में ही होता था जो उस समय राजनीति का भी एक अंग था।
हेरीटेज सोसाइटी के बिहार मण्डल के सदस्य फुहार बाली द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया। अपने वक्तव्य में फुहार बाली ने मुख्य वक्ता के व्याख्यान की प्रशंसा की और कहा कि कुशल इतिहासकार मुख्य वक्ता द्वारा उद्घाटन से इस आयोजन को एक नै पहचान मिली है। उन्होंने इस कार्यक्रम के लिए हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक प्रो. अनंताशुतोष द्विवेदी अध्यक्षा प्रो. नीरु मिश्रा सहित सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।
सत्र का संचालन हेरीटेज सोसाईटी के बौद्ध विरासत शोध संस्थान के निदेशक आजाद हिन्द गुलशन नंदा द्वारा किया गया। आयोजन में सानन्त टीम के सदस्यों का तकनीकी सहयोग प्राप्त हुआ। इस अवसर पर कई विश्वविद्यालयों के फैकल्टी, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं विरासत प्रेमी ने भाग लिया।